Category: 2011

ज्ञानी

ज्ञानी पुण्य और पाप दौनों  के उदय को पुद्गल की पर्याय मानता है , इसलिये दौनों परिस्थितियों में समता भाव रखता है । रत्नत्रय – 115

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दर्शन

अपर्याप्तक अवस्था तथा विग्रहगति में भी चक्षु या/और अचक्षु या/और अवधि   दर्शन होता है । क्योंकि हर जीव के ज्ञान हर समय और हर अवस्था

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तीर्थंकर-प्रकृति

भगवान जब तक तेरहवें गुणस्थान में नहीं जाते तब तक तीर्थंकर-प्रकृति उदय में आती है या नहीं ? आती तो है पर नाम-कर्म में बदल

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पुदगल के गुण

परमाणु में चार गुण होते हैं, एक प्रदेशी होने से यह अशब्द है । स्कंधावस्था में पाँचों गुण (रस, रूप, गंध स्पर्श, शब्द) होते हैं ।

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बादर/सूक्ष्म

बादर लब्धिपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना से सूक्ष्म निगोद निवृत्तिपर्याप्तक असंख्यात गुणा बड़ा होता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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गुप्ति/सामायिक

गुप्ति निवृतिरूप है । सामायिक मानसिक प्रवृति होती है । त.सू.टीका – पं. कैलाशचंद्र शास्त्री जी

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अपर्याप्तकों के क्षयोपशम-सम्यग्दर्शन

यदि पूर्व में आयु बंध कर लिया हो तो, कृतकृत्यवेदी-क्षयोपशम-सम्यग्दृष्टि चारौं गतियों में जा सकता है  ।                                             सामान्य-क्षयोपशम-सम्यग्दृष्टि नारकी से मनुष्य, तिर्यंच से देव, मनुष्य से

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मंगल आशीष

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