Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
अग्नि परीक्षा
सीता जी की अग्नि परीक्षा का नतीज़ा तो परीक्षा लेने व देने वाले पहले से ही जानते थे। बस दुनिया को नतीजा पता लगना था
मार्ग
राजमार्ग – राजा के द्वारा बनाया गया मार्ग, सुविधाजनक, बहुतायत उस पर चलते हैं, निष्कंटक, सुंदर क्योंकि उस पर फूल बिछे रहते हैं, बनाने में
दान
दान क्यों ? पाप के प्रक्षालन के लिये । पापी कौन ? देने वाला या लेने वाला ? कृतज्ञता कौन माने, देने वाला या लेने
पर्यावरण
नल बंद क्यों करें ! जब पानी आना बंद होगा तब नल अपने आप बंद हो जायेगा । हाँ ! जब ज़मीन में पानी समाप्त
संतोष
मनुष्य जो पाता है, सो भाता नहीं, इसलिये साता आता नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
आत्मा
शब्दों में क्या, आत्मा में अर्थ छिपा, कौन सोचता! आचार्य श्री विद्या सागर जी
अहिंसा
शरीर को समय पर उचित भोजन देना अहिंसा है, जैसे किसान असाढ़ की बरसात में बुवाई करने से नहीं चूकता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
कर्म-फल
बहुत दिनों से आपके घर पर किसी ने कब्ज़ा कर रखा हो तो घर छोड़ते समय तोड़फोड़ करके जाता है। ऐसे ही कर्म जब आत्मा
शांति
मलाई कहाँ ? अशांत दूध में, ना । प्रशांत बनो । आचार्य श्री विद्यासागर जी
सदुपयोग
ट्रकों के पीछे लिखा रहता है – “फिर मिलेंगे” । ( फिर मिल कर क्या कर लोगे! ) जो जीवन/ धर्म/ गुरु मिले उसका सदुपयोग
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