Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
मान्यतायें
मान्यतायें सबकी अलग अलग हो सकती हैं । सही/गलत का निर्णय प्रयोग (चारित्र) से ही हो सकता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
बोल
बोल नपा-तुला होता है तो स्वादिष्ट लगता है, ज्यादा होता है तो गड़बड़ी (अपच) होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज्ञान
टार्च तभी प्रयोग में लेते हैं जब जरूरत हो, बाकि समय बंद कर देते हैं । ज्ञान बाह्य वस्तुओं को जानने/देखने के लिये नहीं, शांत
एकता / मोह
एक जुट हों, एक से जुड़ें नहीं; बेजोड़* बनो । *अखंड/अद्वितीय/व्यापक/अपूर्व आचार्य श्री विद्यासागर जी
अति-भक्ति
अति-भक्ति विवेक की कमी से होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
नाखून
ना + खून = जिसमें खून ना हो । डॉक्टर नाखून देखकर बीमारी का पता कर लेते हैं । पर तुम तो नाखून पर Nail
स्त्री
स्त्री को … अर्द्धांगिनी सम्बोधन तो कविओं की भाषा है । वे तो अष्टांगिनी हैं, तभी तो साष्टांगिनी हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
मोह
मोह रूपी असावधानी से/अपनी ही सांसों से, अपना ही दीपक बुझ जाता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज़िंदगी
ज़िंदगी समझ न आये, तो मेले में अकेला; समझ आ जाये तो अकेले में मेला । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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