Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

संलेखना

संलेखना इस जीवन का कलश भी है और अगले जन्म की नींव भी । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अच्छा बुरा समय

जो पूर्णमासी नहीं मनाते, उनके जीवन में अमावस्या नहीं आती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अविरत सम्यग्दर्शन

इसमें निर्जरा ऐसे समझें…… जैसे शादी के समय तो बाजे बजते हैं, बाद में खुद के बाजे बज जाते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अपनी पूजा

भक्तों के द्वारा गुरु की पूजा करते समय गुरु को ध्यान से सुनना चाहिये ताकि अपने आपको उस योग्य बनाये रखने की प्रेरणा मिलती रहे,

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आलाप / वार्तालाप

आलाप – कथन पद्धति कम ना ज्यादा कथन की स्पष्टता वार्तालाप – वार्तालाप में कोई सिद्धांत नहीं आपस में आम बातचीत आ. श्री विद्यासागर जी

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समझाना

हम इतना समझाते हैं पर कोई भी समझता क्यों नहीं ? चोर चोर की समझता नहीं है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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निर्मोह

जिसने घर से पैर निकाल लिया, उसका घर घरोंदा बन गया । वही उस घर को लात मार सकता है । * आचार्य श्री विद्यासागर

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पूर्ण विकास

खिले फूलों को देख खुश मत हो जाना, विकास की सार्थकता तो पराग पर से अंदर की पंखुड़ियाँ हटाना है/खुशबू बिखेरना है , संस्कारों की

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मंज़िल

कितना चल लिये मत पूछो, कितना चलना है, यह भी मत पूछो; बस नीचे निगाह करते हुये (जीव रक्षा करते हुये) चलते रहो, मंज़िल अपने

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परिश्रम

थकावट तब आती है जब फुरसत होती है । लगातार परिश्रम करते समय तो थकावट पसीने में निकलती रहती है, चेहरे पर चमक आ जाती

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मंगल आशीष

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