Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

तारीफ की भावना

तालियाँ सुनने का भाव आये तो सोचना – उनको कैसा लगता होगा जिनको तालियाँ नहीं मिलतीं । दोनों हाथों से पुरुषार्थ करो तो दोनों हाथों

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भूलना

जो भूला*, सो भोला !! आचार्य श्री विद्यासागर जी * बैर आदि भाव

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भक्ति

प्रभु! पर्वत के चरणों में रहने वाली जमीन को चाहे तलहटी कहलाने का गौरव मिलता हो, परन्तु,प्रभु! आपके चरणों में रहने वाले भक्त को तो

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कर्तृत्व

कर्तृत्व (कर्ता) का भाव, कर्तव्य से विमुख कर देता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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प्रशंसा / आलोचना

मीठा मीठा सुनोगे तो सुगर बढ़ जायेगी, करेला/मिर्ची खाओगे तो घट जायेगी (विष से ही विष कटता है) । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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धर्म

1. प्रणाम सबको, पर यथायोग्य 2. मैं-मैं नहीं, तू ही तू आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अनुपात

जीवन/संगीत/पूजा सब में उचित अनुपात बहुत जरूरी है, तभी आनंद आयेगा, क्रिया कार्यकारी होगी । अनुपात बिगड़ा, आपात स्थिति आती है । आचार्य श्री विद्यासागर

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साधु / गृहस्थ

सूप बेकार को छोड़ता है – साधु । छलनी बेकार को ग्रहण करती है – गृहस्थ ।। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मन

मन से किया गया कार्य अच्छा होता है, मालिक प्रवृत्ति का होता है । मन का किया गया कार्य दु:ख देता है, सेवक प्रवृत्ति का

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मंगल आशीष

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