Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
उपसर्ग
ज्ञानी सोचता है कि उपसर्ग से कर्म जल्दी कट जायेंगे, उपसर्ग/प्रश्न पत्र देने वाला कोई भी हो, परीक्षा तो आपको ही देनी होगी। आचार्य श्री
संगति
सोना जलता नहीं, अशुद्धि ही जलती है, पर अशुद्धि के सम्पर्क में आकर सोने को भी तपना पड़ता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
उपकार
चींटियाँ भी दूसरों पर उपकार करती हैं। उनको बचाने में हम पाप और हिंसा से बच जाते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
विकार
सरसरी निगाह से देखने का मतलब रूचि नहीं, सबकुछ गौण। यदि किसी प्रिय वस्तु पर निगाह टिक गयी तो विकार आए बिना रहेगा नहीं। आचार्य
बंधन
बंधन मुक्ति में बाधक नहीं होता, यदि हम उसे बंधन माने ही नहीं तो । आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज्ञान
ज्ञान जानकारी के लिये होता है, उसका प्रयोग अनिवार्य नहीं होता । आइन्सटिन के Atomic Energy के ज्ञान से Atom Bomb के प्रयोग ने संसार
ज्ञान/आस्था
विपत्ति में ज्ञान चिल्लाता है, आस्था झेलती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
क्रोध
क्रोध करने का अर्थ है दूसरों की गलतियों की सज़ा खुद को देना । आचार्य श्री विद्यासागर जी ( श्री कल्पेश भाई )
स्वानुभव
दर्पण को जब गौण करोगे, तब अपना बिम्ब दिखेगा । बाह्य पदार्थों का महत्त्व जब कम करोगे, तब स्वानुभव होगा । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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