Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

नियम

आगे बढ़ने से पहले, जो पहले नियम लिये हैं, उन्हें देख लो, विचार कर लो । पड़ौसी की दूसरी दुकान देखकर, अपनी दूसरी दुकान मत

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विश्वास

श्वांस की क्षमता देखें – फेफड़ों में वायु भरने पर यदि कार भी ऊपर से निकल जाये तो कुछ नुकसान नहीं होता । हवाईजहाज के

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संसार

संसारी जीव संसार के चक्कर को चक्कर ना मान कर शक्कर मान रहा है । मीठे का आदी हो जाने के कारण यथार्थ को भी

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सुख

अति ( Excess ) के बिना इति ( Goal ) से साक्षात्कार करना संभव नहीं, पीड़ा की अति ही, पीड़ा की इति/End है, पीड़ा की

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नियम

नियम तो सब लोग लेते हैं – पर ‘किंतु’ ‘परन्तु’ लगाकर । नियम मैं निभवा दूंगा, ‘किंतु’ ‘परन्तु’ तुम निभालो । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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गुरू

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पांव ? बलिहारी गुरू आपकी, गोविन्द दियो बताय । आचार्य श्री – सच्चे गुरू  गोविंद बताते नहीं है, आपको

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मोह

मोह को छोड़ो, मोक्ष मिलेगा । करना क्या है ? ‘ह’ की जगह ‘क्ष’ लगाना है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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वीतरागता

वीतरागता से अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति मिल सकती है, आराधना से नहीं । क्योंकि आराधना तो जानने की प्रक्रिया है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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कर्मबंध

हर Action का Reaction होता है । सिर्फ सिद्ध भगवान का Action ही होता है, वो भी ऊपर जाने का । जैसे फुटबाल में से

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परिचय

हम शरीर के निकट तो हैं पर उससे हमारा परिचय नहीं है । हमारा व्यक्तित्व पेट और पेटी बनकर रह गया है, उसी को हमने

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मंगल आशीष

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