Ego
Ego से झंडा-डंडा, शास्त्र-शस्त्र, बांसुरी-बांस, निर्जरा (कर्म काटना/समाप्त होना) से निकाचित/निद्यत्ति (कर्मों की तीव्र/घातक प्रकृतियाँ) कर्म बन जाते हैं।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
Ego से झंडा-डंडा, शास्त्र-शस्त्र, बांसुरी-बांस, निर्जरा (कर्म काटना/समाप्त होना) से निकाचित/निद्यत्ति (कर्मों की तीव्र/घातक प्रकृतियाँ) कर्म बन जाते हैं।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
One Response
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि इगो यानी घमंड से कर्मों की तीव्रता बढती रहती है! कर्मों को काटना है जो जीवन में इगो यानी घमंड को भगाना उचित है! अतः जीवन में झंडा डन्डा, शास्त्र शस्त्र, बांसुरी बास पर श्रद्वान रखना परम आवश्यक है!