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कर्म
हीरों से जड़ा सोने का आभूषण, हीरे का कहलाता है। सोने जैसी काया में, शुभ/धार्मिक कर्म रूपी हीरा जड़ जाने से, उसमें निखार आजाता है / उसका महत्व
भाग्य
कर्म, भाग्य, पुरुषार्थ – ये सब पर्यायवाची हैं । (श्रीमति महेन्द्री)
कर्म/कर्मफल
कर्म गलत/सही होता है । कर्मफल गलत/सही नहीं होता, क्योंकि यह तो किये गये कर्म का फल है, गलत कर्म का गलत फल मिलेगा ही
कर्म
कर्म उनको पैदा करने वाले से बड़े नहीं होते । जो पैदा करना जानता है वह उन्हें समाप्त भी कर सकता है । गुरुवर मुनि
कर्म
ख्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में, कर्म की शाख को हिलाना होगा । कुछ नहीं होगा कोसने से अंधेरे को, अपने हिस्से का
निर्जरा
धीरे धीरे टहलने से वज़न कम नहीं होता, बढ़ और जाता है । बिना तप करे, छोटे मोटे नियमों से कर्म कटते नहीं हैं बल्कि
कर्म
एक ही चीज है जो भगवान से भी नहीं ड़रती । वह है कर्म, भगवान को भी सहने पड़ते हैं ।
कर्म
आग जले, धुंआ न उठे; पानी बरसे , कीचड़ न हो; कर्म करें मगर अहं से न भरें । आचार्य श्री पुष्पदंतसागर जी
कर्म
हमारे कर्म ही, हमारों से, हम को अलग करने में कारण बनते हैं । चिंतन -श्रीमति शशि
कर्म
जब ज़िंदगी हंसाये तब समझना की अच्छे कर्मों का फल है, और जब ज़िंदगी रूलाये तब समझना की अच्छे कर्म करने का समय आ गया
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