Tag: धर्म

भक्ति/आदर

 यदि  सिंदूर को पत्नी माथे पर धारण करले तो उस एक चुटकी सिंदूर से पत्नी से पति बंध जाता है । ऐसे ही भक्ति/आदर से

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धर्म की विनय

करैया गाँव के बौहरे जी की हवेली मंदिर के सामने थी । उनका वैभव और यश चरम सीमा पर था, लोग अच्छा काम करने जाने

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धर्म

धर्म में जकड़न नहीं होनी चाहिये, खुलापन/स्वेच्छा होनी चाहिये ।

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पत्नी

शास्त्रों के अनुसार पत्नी अनुगामिनी होती है, पर आजकल तो देखा जाता है कि पति पत्नी को Follow करते हैं, ऐसा क्यों ? क्योंकि आजकल

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भोग/धर्म

यदि भोगना ही है तो धर्म करते हुये भोगो । जैसे वृक्ष के फल तोड़कर खाना – धर्म, वृक्ष काटकर फल खाना – अधर्म ।

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धर्म

जो जगा दे, झकझोर दे, निद्रा तोड़ दे । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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धर्म

धर्म प्राणवायु है, हमारे जीवन के लिये Oxygen है, जो दिखती नहीं है, पर खाना, पानी, माँ आदि से भी ज्यादा  महत्वपूर्ण है | चिंतन

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धर्म

धर्म व्यक्तिगत साधना का है , पिछलग्गू बनने का नहीं । कब तक बच्चे बने अपनी माँ की ऊँगली पकड़कर चलते रहोगे!

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मंगल आशीष

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