Tag: धर्मेंद्र

लोभ

लोभ को अभी जीतने का प्रयास करें- क्योंकि “मानव जब बूढ़ो भयो, तृष्णा भई जवान” (धर्मेंद्र)

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निंदा / नींद

“निंदा” और “नींद” पर जो व्यक्ति – विजय पा लेते हैं, उन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता । (धर्मेंद्र)

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बच्चों का भविष्य

धान की अच्छी फ़सल के लिये पौध तथा खेत दोनों ही तैयार करने होते हैं । बच्चों को अच्छे संस्कार तथा वातावरण दोनों ही देने होंगे

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गुण

जिसे गुण की पहचान नहीं है…., उसकी प्रशंसा से डरो एवं जो गुण का जानकार है…. उसके मौन से डरो… !! ( धर्मेंद्र)

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वैभव

मैं नमक की तरह हूँ । जो जरुरी तो है, मगर जरुरत से ज्यादा हो तो जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देता हूँ । मैं बोलता

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गुरु / भगवान

गुरु/भगवान के दरबार में “द” शब्द वाली वस्तु “स” शब्द में बहुत ही जल्दी बदलती है.. जैसे दुःख बदल जाता है, सुख में; दुविधा बदल

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माहौल

गाँव छोड़कर शहर आये एक व्यक्ति ने क्या खूब लिखा है … “गाँव छोड़ के शहर आया था फिक्र वहां भी थी, फ़िक्र यहां भी

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दृष्टि

द्रश्य महत्वपूर्ण नहीं, दृष्टि महत्वपूर्ण है । (धर्मेंद्र)

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अनुभव/ज्ञान

बड़े बड़े ज्ञानियों के विचारों को भुला दिया गया पर जिन्होंने अनुभव से सीखा/बताया वे याद रखे गये – महावीर, कबीर, सूरदास आदि । आचार्य

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दुनिया का सच

लोग दूल्हे के तो आगे चलते हैं, पर अर्थी के पीछे। दुनिया सुख में तो आगे रहती हैं, पर दुख में पीछे हो जाती है

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मंगल आशीष

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