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मन
जितना बड़ा “प्लोट” होता है उतना बड़ा “बंगला” नहीं होता, जितना बड़ा “बंगला” होता है उतना बड़ा “दरवाजा” नहीं होता, जितना बड़ा “दरवाजा” होता है
मन और क्रियायें
मन बच्चा है, शरीर पिता । क्या पिता को बच्चे के कहने से गलत स्थानों पर जाना/कार्यों को करना चाहिये ?
मन
मन रूपी खेत में यदि अच्छे विचारों की फसल नहीं बोयी तो घास तो उगेगी ही । मुनि श्री वीर सागर जी
कद / मन
इतना छोटा कद रखिये कि सभी आपके साथ बैठ सकें, और इतना बड़ा मन रखिये कि जब आप खड़े हों तो कोई बैठा न रह
मन
शरीर पूरा पवित्र नहीं हो सकता, फिर भी हम उसे पवित्र करने में लगे रहते हैं। मन पवित्र हो सकता है, पर उसकी ओर हमारा
मन
पानी कीचड़ बनाता है, पानी ही कीचड़ साफ़ करता है। मन में विकार आते हैं, मन से ही विकार दूर होते हैं।
मन
मन जल जैसा होता है – दोनों का स्वभाव नीचे की ओर जाने का है । दोनों को ऊपर उठाने के लिये पुरूषार्थ करना पड़ता
भक्ति/मन
मन लगाने के लिये सामूहिक क्रियायें करें, भक्ति अकेले में सबसे अच्छी होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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