Tag: मुनि श्री प्रमाणसागर जी

अनंत बार ग्रैवियक

अनंत बार ग्रैवियक गये, कुछ नहीं हुआ; इससे मुनि पद की भूमिका कम नहीं हुई, मिथ्यात्व(या पुरुषार्थ की कमी) का दोष है । मुनि श्री

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गुरु-दर्शन

गुरु के समीप ही नहीं पहुँच पाते, दूर से ही दर्शन होते हैं तो दूरदर्शन पर क्यों ना करें ? सूर्य दूरदर्शन पर दिखेगा तो

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निमित्त / उपादान

निमित्त माचिस की जलती हुई तीली है, इससे अपने ज्ञान का दीपक जल्दी जलाओ, क्योंकि तीली तो थोड़ी देर तक ही जलती है । मुनि

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भेड़चाल

ढ़ोल बजते ही नाचना न शुरू कर दें, यह तो देख लें कि ढ़ोल जन्म की खुशी के हैं या मातम के ! मुनि श्री

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झूठ का फल

वसु राजा ने झूठ बोला, नरक गया; सत्यघोष ने भी झूठ बोला, नरक नहीं गया, ऐसा क्यों ? वसु के झूठ से लाखों जीवों की

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धर्म

धर्म, अच्छे को ग्रहण करना और अच्छा बनना । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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भाषा

जैन साहित्य की मूल भाषा – प्राकृत, बाद में अप्रभ्रंश, और उसके बाद संस्कृत आयी । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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भगवान के दर्शन

मंदिर में भगवान की मूर्ति में मूर्तिवान को देखते तो चेहरे पर मुस्कान ना आती ! जैसी प्रियजनों को देखते समय आ जाती है ।

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गर्भ-गृह

गर्भ-गृह सिर्फ जन्म लेने का स्थान ही नहीं बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का ऑरिगिन स्थल को भी कहते हैं, जैसे मंदिर का गर्भ-गृह । मुनि श्री

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शांतिधारा

आदिपुराण में भरत के अशुभ स्वप्न के लिये शांतिधारा करने का वर्णन आता है । बाद में माघनंदी कृत अभिषेक पाठ का वर्णन आता है

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मंगल आशीष

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