Tag: पाप
पाप / पुण्य / मुक्ति
प्राय: धार्मिक जन पाप-पुण्य/नरक-स्वर्ग की बातें करते हैं । ज्ञानी, पाप-पुण्य से परे, मुक्ति की । मुनि श्री सौम्यसागर जी
पाप / अपराध
पाप का प्रकटीकरण अपराध है । अपराध बाह्य है, इस पर नियंत्रण देश का कानून करता है । पाप आन्तरिक है/निजी है तथा इस पर
पुण्य/पाप फल
पुण्य का Short term फल – संतुष्टि, Long term में – वैभवादि, सुखानुभूति । पाप का Short term फल – संताप, Long term में –
पाप / पुण्य
पापी से पापी कुछ पुण्य तो करता ही है, तभी तो पेट भरता है/अपने बच्चों पर दया करता है ।
परिस्थितिवश पाप
परिस्थिति पाप नहीं कराती, पाप तो मन:स्थिति से होता है। जिस परिस्थिति में रागी, पाप करता है; उसी परिस्थिति में वैरागी पुण्य करता है ।
पाप/पुण्य
पाप(करना पड़े तो) ऐसे करें जैसे कड़वी दवाई खायी जाती है, पुण्य जैसे मिठाई खाते हैं । पाप का फल मिठाई की तरह खाकर समाप्त
पाप/पुण्य
फुटबाल के खेल की दो टीमें हैं, पाप और पुण्य !! कम से कम पाप के गोल पुण्य से ज्यादा मत होने देना, हो सके
अपच
भोजन न पचने पर चर्बी बढ़ती है, वैभव न पचने पर अहंकार, और पुण्य न पचने पर पाप। (डा.अमित)
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