Tag: मुनि श्री प्रमाणसागर जी

सम्बोधन

राम को ईशांतराज (भील) “तू” से संबोधन कर रहे थे । लक्ष्मण को अच्छा नहीं लगा । राम ने कहा – इन्होंने अपनी (भक्त) और

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मनुष्य और वस्तु

मंदिर में टूटी हुई वस्तु नहीं रखी जाती तो टूटा हुआ मनुष्य क्यों जाता है ? टूटी हुई वस्तु जुड़ नहीं सकती, पर टूटा हुआ

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काला धन

धन ना काला होता है ना ही सफेद ! धनवान और उसका मन काला/सफेद होता है । और काले को सफेद करने का उपाय वही

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सुखकारी / हितकारी

सुख तात्कालिक होता है । हित कागज़ों में लगे पिन जैसा होता है जो जोड़कर तो रखता है पर चुभता भी है । क्यों ना

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ज्ञान और धर्म

ज्ञान पूर्ण नहीं तो धर्म को भी अपूर्ण मानें ? ज्ञान अभिव्यक्ति है इसलिये अपूर्ण, धर्म अनुभूति है इसलिये पूर्ण । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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वृद्धावस्था

वृद्धावस्था में अशक्ति के साथ-साथ(ज्यादातर) आसक्ति भी हो जाती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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संस्कृति / सभ्यता

संस्कृति/सभ्यता आंतरिक, स्थायी, भारतीय चेतना को परिष्कृत करती है/जीवन को सुधारती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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सफलता

सफलता किसी पर आश्रित नहीं होती – पैसा, प्रसिद्धि आदि पर नहीं। गुणों को निखारना/उन्हें बनाये रखना सफलता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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जानना / मानना

जानने के साथ मानने वाले युधिष्ठिर, और सिर्फ़ जानने वाले दुर्योधन बनते हैं । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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