इसे सीमाज्ञान भी कहते हैं ।
यह अधोगति पुदगलों को अधिकता से ग्रहण करता है, याने नीचे के रुपी पदार्थों को ज्यादा जानता है ।
स्याद्वाद
देवों को ऊपर की दिशा का ज्ञान, उनके विमानों की चूलका (शिखर) तक ही होता है ।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
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