अवगाहन तो मुख्य रूप से आकाश में ही होता है। इसलिए आकाश को “विभु” कहा है (सबका आधार/ सर्वसामर्थ्यवान प्रभु)।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/12)
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने आकाश को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने आकाश को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।