अशुद्ध आत्मा, शुद्ध आत्मा का चिंतन कैसे कर लेता है ।
श्री विमल
आज्ञा-विचय से ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
।
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आत्मा—जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणो में परिणमन करता है।अतः अशुद्व और शुद्व आत्मा का भेद समझता है वही आत्मा का शुद्व चिंतन करने में समर्थ हो सकता है।
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आत्मा—जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणो में परिणमन करता है।अतः अशुद्व और शुद्व आत्मा का भेद समझता है वही आत्मा का शुद्व चिंतन करने में समर्थ हो सकता है।