उत्तम ब्रह्मचर्य-धर्म
ब्रह्म भाव निज भाव है, देह भाव भव भाव।
निज में ही जो नित रमें, ब्रह्मचर्य सुख छाँव।
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
ब्रह्म भाव निज भाव है, देह भाव भव भाव।
निज में ही जो नित रमें, ब्रह्मचर्य सुख छाँव।
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
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4 Responses
ब़ह्म अर्थात आत्मा से चर्या का नाम ब़ह्मचर्य धर्म होता है। भोगों से विरक्ति, कषाय का अभाव, निष्पाप अवस्था होने पर आनन्द का नाम ब़ह्मचर्य धर्म है। धार्मिक व्यक्तियों को संसारिक उपयोग एवं भोगों से पृथक रहना परम आवश्यक है।
‘देह भाव भव भाव’ ka meaning clear karenge,
please ?
देह भाव = शरीर में लिप्तता के भाव।
भव भाव = जिन भावों से भव मिलें।
Okay.