उत्तम सत्य धर्म
सत्य कभी कड़ुवा होता ही नहीं,
बड़ी अजीब बात है !! अभी तक तो हम सुनते आ रहे हैं कि सत्य कड़ुवा होता है ।
जब हम सत्य कलुषताओं के लिफ़ाफे में रखकर देते हैं तब वो कड़ुवा लगने लगता है ।
अगर सत्य कड़ुवा होता तो भगवान तो जीवनपर्यंत असत्य ही बोलते रहते, क्योंकि उन्होंने तो कभी कड़ुवा बोला ही नहीं ।
गुरू मुनि श्री क्षमासागर जी
- असत्य और सत्ता की निवृत्ति के बिना सत्य में प्रवृत्ति हो ही नहीं सकती ।
- राग में हम अपने और अपनों को सत्य मान रहे हैं ।
- अरहंत नाम सत्य है/राम नाम सत्य है, ये हम मरे हुयों को सुना रहे हैं,
ज़िंदा में तो संबधी और व्यापार को ही सत्य मान रहे हैं । - मौन भी सत्य प्राप्ति कराने में कारण है, कम से कम असत्य से तो बचा ही लेता है ।
- सफेद बालों को काला करना, असली दांत गिरने पर नकली लगाना, सत्य से असत्य बनने की कोशिश है ।
- मोबाइल ने झूठ बोलना और बढ़ा दिया है ।
- हम जीवंतों में सत्य नहीं, पत्थर के भगवान के स्वरूप में सत्य है ।
- सत्य के भान के बिना सत्य का व्याख्यान हो ही नहीं सकता ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी