उत्तेजना
क्रोध, मान, माया, लोभ तथा काम-वासना की भी उत्तेजना होतीं हैं।
उत्तेजना = कषाय आदि का तीव्र रूप, जिसमें कुछ भी करने को तैयार, मरने-मारने को भी।
क्रोधादि को तो रोक नहीं सकते पर उनकी उत्तेजना Avoidable है।
उत्तेजित को कहते हैं – मानांध, कामांध आदि।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
उत्तेजना का तात्पर्य गुस्सा करना होता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि क़ोध,मान, माया लोभ तथा काम वासना की उत्तेजना होती है। उत्तेजना कषाय आदि का तीव्र रुप होता है कि जिसमें कुछ भी मरने मारने को तैयार हो जाते हैं। अतः जीवन में क़ोधादि पर नियंत्रण करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।