उपादान / निमित्त

जीव तथा पुद्गल अपनी-अपनी उपादान शक्ति से गतिशील/ स्थित रहते हैं। फिर धर्म/ अधर्म का क्या प्रयोजन ?
एक कार्य के पीछे अनेक कारण होते हैं। कुछ Common कारण होते हैं जैसे हवा, आकाश (उदासीन कारण)।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र 5/17)

(धर्मद्रव्य का गतिहेतुत्व जीव और पुद्गल द्रव्यों की गतिशीलता का उदासीन, किन्तु अनिवार्य, निमित्त है। तदेव अधर्मद्रव्य का स्थितिहेतुत्व उनकी स्थिरता के लिए)

कमल कांत

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3 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने उपादान एवं निमित्त को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए उपादान एवं निमित्त दोनों आवश्यक होतें है।

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