क्रोधादि चारों कषाय का उदय तो हर समय रहता है पर हानि तभी होती है जब उनमें प्रवृत्ति/उपयोग लग जाता है ।
विचार यह करना चाहिये कि मन की शांति कषाय करने से पहले थी या बाद में रही !
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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कषाय का मतलब आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं,यह चार प्रकार की होती है,क़ोध मान माया और लोभ। अतः मुनि श्री का कथन सत्य है कि क़ोधादि चारौ कषाय का उदय तो हर समय रहता है पर हानि तभी होती है जब उनमें प़वति या उपयोग लग जाता है। अतः विचार यह करना चाहिए कि मन की शांति कषाय करने से पहले थी या बाद में रही है। अतः कषायों को शुरुआत में नियंत्रण करने का प्रयास करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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कषाय का मतलब आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं,यह चार प्रकार की होती है,क़ोध मान माया और लोभ। अतः मुनि श्री का कथन सत्य है कि क़ोधादि चारौ कषाय का उदय तो हर समय रहता है पर हानि तभी होती है जब उनमें प़वति या उपयोग लग जाता है। अतः विचार यह करना चाहिए कि मन की शांति कषाय करने से पहले थी या बाद में रही है। अतः कषायों को शुरुआत में नियंत्रण करने का प्रयास करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।