अनंतानुबंधी → अपनी सीट पर बैठ कर दूसरों की सीटों पर पैर पसार कर लेटना।
अप्रत्याख्यान → मेरी सीट मेरी, तुम्हारी सीट तुम्हारी।
प्रत्याख्यान → अपनी सीट पर भी Adjust कर लेना।
संज्वलन → अधिक व्यक्तियों को बैठाकर खुद खड़े होना।
कमलाबाई जी (पं. वंशीधर जी )
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उपरोक्त कथन में कषाय के चार भेद बताये गये हैं वह पूर्ण बहुमत है! अतः सब कुछ के कल्याण के लिए कषाय को समाप्त करना परम आवश्यक है!
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उपरोक्त कथन में कषाय के चार भेद बताये गये हैं वह पूर्ण बहुमत है! अतः सब कुछ के कल्याण के लिए कषाय को समाप्त करना परम आवश्यक है!