गुरु/धर्म कह-कह कर थक गए कि… “करो ना, करो ना”(*),
यदि कर लिया होता, तो आज यह न कहना पड़ता कि…
“करो ना”(**)
(*)…..जो करने योग्य/ करना चाहिए था
(**)…बाह्य/ क्रियात्मक मत करो
चिंतन
Share this on...
3 Responses
उक्त कथन सत्य है कि गुरु वाचन करके सभी श्रावकों को धर्म उपदेश देते रहे कि करो करो न! लेकिन याद कर लिया होता तो आज जो समस्या है वह नहीं होती। इसलिए जो करने योग्य है उसको तो करो । अतः धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए ताकि धर्म हमेशा कायम रहेगा। धर्म बाहर से नहीं लेकिन अंतरंग की आत्मा को विशुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि इस बीमारी से बचाव संभव है।
3 Responses
उक्त कथन सत्य है कि गुरु वाचन करके सभी श्रावकों को धर्म उपदेश देते रहे कि करो करो न! लेकिन याद कर लिया होता तो आज जो समस्या है वह नहीं होती। इसलिए जो करने योग्य है उसको तो करो । अतः धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए ताकि धर्म हमेशा कायम रहेगा। धर्म बाहर से नहीं लेकिन अंतरंग की आत्मा को विशुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि इस बीमारी से बचाव संभव है।
“बाह्य/ क्रियात्मक” ka kya meaning hai?
कोरोना फैलने की सम्भावना में मंदिर/तीर्थों पर जाकर पूजा/ विधान की जगह भावात्मक धर्म करें ।