ब्रह्मचर्य

अनादि काल से इंद्रियों/ मन में उलझे हैं; क्रोध ने अंधा, मान ने बहरा, मायाचारी ने अविश्वासी, लोभ ने बेशर्म बना दिया है।
पर से आकर्षित होना वासना है, ब्रह्मचर्य नहीं। वासना यानी वास+ना सुख का वास ना/ भटकन।
इन सब में सावधानी ब्रह्मचर्य है/ अपनी आत्मा में रमण है/ क्षयोपशम से क्षायिक में जाने की प्रक्रिया है।
हमको व्यवहार से निश्चय में जाना है।

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

September 29, 2023

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031