क्षुधा रोग विनाशनाय का अर्घ चढ़ाते समय “भूख समाप्त हो”, ऐसा ही नहीं, “पर” द्रव्यों के प्रति आसक्ति/ मूर्छा का विनाश हो, ऐसे भाव भी रखना चाहिये।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
(क्योंकि भोजन तो पर-पदार्थ का एक Item है। हमारी असीमित भूख तो असीमित पर-पदार्थों की है)
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2 Responses
क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने क्षुधा रोग विनाशनाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में पर द़व्यों का विनाश हो ऐसा भाव रखना परम आवश्यक है।
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क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने क्षुधा रोग विनाशनाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में पर द़व्यों का विनाश हो ऐसा भाव रखना परम आवश्यक है।
Beautiful post !