चरमोत्तम – देही

चरम = अंतिम + देही = शरीर ( जैसै पांडव, गजकुमार आदि )
उत्तम → 63 शलाका पुरुष उनका भी अकाल मरण संभव है।
चरम + उत्तम देही, तीर्थंकर ही होते हैं ( जिनका अकाल मरण नहीं होता है)

तमुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/53)

Share this on...

4 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने चरमोत्तम देही को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

    1. हाँ, जैसे गजकुमार तथा पांडवों का लगता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

April 21, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930