चरमोत्तम – देही
चरम = अंतिम + देही = शरीर ( जैसै पांडव, गजकुमार आदि )
उत्तम → 63 शलाका पुरुष उनका भी अकाल मरण सम्भव है।
चरम + उत्तम देही, तीर्थंकर ही होते हैं ( जिनका अकाल मरण नहीं होता है )
तमुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/53)
चरम = अंतिम + देही = शरीर ( जैसै पांडव, गजकुमार आदि )
उत्तम → 63 शलाका पुरुष उनका भी अकाल मरण सम्भव है।
चरम + उत्तम देही, तीर्थंकर ही होते हैं ( जिनका अकाल मरण नहीं होता है )
तमुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/53)
3 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने चरमोत्तम देही को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘चरम-देही’ ka अकाल मरण kya ho sakta hai ?
हां, जैसे गजकुमार तथा पांडवों का लगता है।