व्यवहार नय से जिनके 10 प्राण हों, निश्चय नय से जिनके चेतना हो । व्यवहार नय से सिद्ध, जीव नहीं होते । अशुद्ध पारिणामिक – संसारी जीव, शुद्ध पारिणामिक – सिद्ध । किन्हीं किन्हीं ग्रन्थों में जीवत्व को औदायिक भाव भी कहा है, 10 प्राण उदय की अपेक्षा से ।
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