जीवन बांसुरी जैसा है,
जिसमें बहुत से छेद (कमियाँ) हैं,
अंदर से खोखली है (सार नहीं है) ।
यदि सही छेद को, सही समय पर ऊँगली रखकर दबा दिया जाये,
तो इसी खोखलेपन से धर्म का / मोक्ष का मधुर संगीत निकलने लगता है ।
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गुरूजन कहना यह चाहते हैं कि बिना धर्म के जीवन खोखला है/संगीतविहीन है/बेसुरा है ।
और समय रहते यदि सही पुरूषार्थ कर लिया जाये तो मधुर संगीत खोखले शरीर से ही निकलता है, मोक्षमार्ग पर लगते ही वो खोखलापन समाप्त हो जाता है ।
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गुरूजन कहना यह चाहते हैं कि बिना धर्म के जीवन खोखला है/संगीतविहीन है/बेसुरा है ।
और समय रहते यदि सही पुरूषार्थ कर लिया जाये तो मधुर संगीत खोखले शरीर से ही निकलता है, मोक्षमार्ग पर लगते ही वो खोखलापन समाप्त हो जाता है ।