नियत को अनियत बनाना जैन दर्शन है।
इसीलिये श्रमण न नियत विहार/ न नियत आहार करते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जैन दर्शन नियति को अनियत बनाता है! जबकि श्रमण न नियति विहार करते हैं, न आहार! श्रावक के लिए जैन दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसका पालन करना चाहिए ताकि देश का कल्याण हो सकता है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जैन दर्शन नियति को अनियत बनाता है! जबकि श्रमण न नियति विहार करते हैं, न आहार! श्रावक के लिए जैन दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसका पालन करना चाहिए ताकि देश का कल्याण हो सकता है।