दान-तीर्थ की स्थापना पहले हुई (राजा श्रेयांस द्वारा), धर्म-तीर्थ की बाद में (भगवान आदिनाथ के केवलज्ञान होने पर)।
पंचमकाल के अंत में जब दान समाप्त हो जायेगा (व्रतियों को आहार-दान) तब धर्म भी समाप्त हो जायेगा।
जो दान देना नहीं जानता, वह धर्म भी नहीं जान सकता।