“सुख रत्ती भर भी कम न हो, दु:ख पल भर भी टिके नहीं।” ऐसी चाहना ही सबसे बड़ा दु:ख है।
साधु दु:ख स्वीकारते हैं इसलिए सुखी रहते हैं। गाली ना स्वीकारने पर उन्हें सुख होता है क्योंकि कर्म कटे। दु:ख वाले कर्मों का साथ देना ही सुख है।
आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (17 जून)
Share this on...
One Response
आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने दुख का विस्तृत उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए दुख सहने की शक्ति होना परम आवश्यक है।
One Response
आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने दुख का विस्तृत उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए दुख सहने की शक्ति होना परम आवश्यक है।