देवों में पंचेंद्रिय संज्ञी ही जाते हैं।
असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तक –> भवनत्रिक में ही।
सम्यग्दृष्टि देवों में ही, पांचवे गुणस्थान वाले 16 स्वर्ग तक।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 4/21)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने देवों मे गति को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने देवों मे गति को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।