धर्म

धर्म अंदर से भरता है। प्राय: यह भ्रम रहता है कि बाहर से भरता है इसीलिये धर्म पर से विश्वास घट रहा है।
धर्म (सार्वभौमिक है) और धार्मिक क्रियायें अलग-अलग हैं। भगवान को देखें पूर्ण अभावों में भी पूर्ण प्रसन्न।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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4 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने धर्म का विस्तृत वर्णन किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः धर्म को अपने अन्दर यानी आत्मा स्थापित करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है। इसके साथ श्रद्धान रखना भी परम आवश्यक है।

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