धर्म/अधर्म
धर्म जब आरामतलबी की ओर बढ़ने लगता है, तब अधर्म की ओर मुँह कर लेता है ।
चिंतन
धर्म जब आरामतलबी की ओर बढ़ने लगता है, तब अधर्म की ओर मुँह कर लेता है ।
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One Response
Aram karke to har koi dharm kar sakata he parantu jo kashto ko sahkar bhi dharm marg par bade wah hi sahi dharm he.