नये मंदिरों की आवश्यकता
कुटुम्ब दादाजी से नहीं, पिता पुत्र से चलता है ।
व्यापार को भी आगे चलाने के लिये नये नये Item लाये जाते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
कुटुम्ब दादाजी से नहीं, पिता पुत्र से चलता है ।
व्यापार को भी आगे चलाने के लिये नये नये Item लाये जाते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जब कोई वस्त्र का उपयोग करते हैं, उनको फटने के बाद एवं रिपेअर करने के बाद भी नष्ट हो जाते हैं।इसी प्रकार पुराने मंन्दिर भी जीर्ण शीर्ण हो जाते हैं।अतः नये मंन्दिरों के निमार्ण की आवश्कता है क्योंकि आजकल मंन्दिरों की संख्या कम होती जा रही है जिसके कारण दर्शन के लिए वंचित हो जाते हैं।नये मंन्दिर का निमार्ण होने पर पुण्य की प़ाप्ती होती है।जो लोग उस मंन्दिर में अपने पुण्य अर्जित करने के लिए आते हैं तो उसका कुछ पुण्य उनके खाते में भी जाता है जिन्होने मंन्दिर का निर्माण करवाया हो।