क्षयोपशमिक, क्षायिक और औपशमिक भाव नियत नहीं होते, पुरुषार्थ से ही उनका संबंध है ।
जोड़ियाँ भी नियत नहीं, वरना तलाक क्यों होते ! देवों में जोड़ियाँ नियति से बनती हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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नियति- – जीव के द्वारा बांधे गए जिस कर्म का उत्कषर्ण या अपकषर्ण तो संभव है पर संक्रमण संभव नहीं है उसे नियत कर्म कहते हैं। इतना अवश्य है कि जिनबिंब के दर्शन से नियतिपना नष्ट होता है। पुरुषार्थ- – चेष्टा या प़यत्न करना होता है, धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष यह चार प्रकार के पुरुषार्थ होते हैं। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ के द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं लेकिन धर्म से रहित अर्थ और काम पुरुषार्थ संसार बढ़ाने वाले होते हैं।
क्षयोपशमिक,क्षायिक और औपशमिक भाव नियत नहीं होते हैं लेकिन पुरुषार्थ से ही उनका सम्बंध होता है। अतः जोड़ियां नियत नहीं होती है लेकिन देवों में जोड़ियां नियत से ही बनतीं हैं।
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नियति- – जीव के द्वारा बांधे गए जिस कर्म का उत्कषर्ण या अपकषर्ण तो संभव है पर संक्रमण संभव नहीं है उसे नियत कर्म कहते हैं। इतना अवश्य है कि जिनबिंब के दर्शन से नियतिपना नष्ट होता है। पुरुषार्थ- – चेष्टा या प़यत्न करना होता है, धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष यह चार प्रकार के पुरुषार्थ होते हैं। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ के द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं लेकिन धर्म से रहित अर्थ और काम पुरुषार्थ संसार बढ़ाने वाले होते हैं।
क्षयोपशमिक,क्षायिक और औपशमिक भाव नियत नहीं होते हैं लेकिन पुरुषार्थ से ही उनका सम्बंध होता है। अतः जोड़ियां नियत नहीं होती है लेकिन देवों में जोड़ियां नियत से ही बनतीं हैं।