निर्माल्य

निर्माल्य दो प्रकार का –
1. “स्वाहा” (अपना अधिपत्य त्यागता हूँ) कह कर चढ़ाया जाता है जैसे अष्ट द्रव्य,
इसका दुबारा प्रयोग नहीं हो सकता ।
2. बिना “स्वाहा” के जैसे पैसा/उपकरण – इसका दुबारा प्रयोग हो सकता है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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4 Responses

  1. निर्माल्य- – मंत्रोच्चार या अभिप्राय पूर्वक सच्चे देव शास्त्र और गुरु के सम्मुख चढ़ाई गई वस्तु निर्माल्य कहलाती है।यह दो प्रकार के होते हैं देव द़व्य और देवधन।जो नैवेद्य,जल,चन्दन आदि द़व्य भगवान् के सम्मुख अर्पित की जाती है,वह देवद़व्य निर्माल्य हैं। अतः इस सामग्री को स्वयं प़साद के रूप में ग़हण करें या अन्य किसी को प़साद देता है तो अन्तराय कर्म का बंध होता है। मन्दिर में जीर्णोद्धार, जिनबिंब,वेदी प्रतिष्ठा,जिन पूजन तथा रथोत्सव आदि धर्म कार्य के लिए दान राशि दी जाती है वह देवधन रुप निर्माल्य हैं। अतः जो लोग इस निर्माल्य को ग़हण करता है वह नरक-गति बंधती है। अतः जो विवरण दिया गया है वह कथन सत्य है। अतः जीवन में कभी भी निर्माल्य को स्वयं और किसी को ग़हण नहीं करना चाहिए। इस निर्माल्य को पशु पक्षी को खिलाने का प्रयास करना चाहिए, इसमें किसी तरह का दोष नहीं लगता है।

    1. हाँ, किया जा सकता है जैसे गुल्लक के पैसे से मुनियों का प्रबंधन किया जाता है ।

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