पद का सम्मान
बहुरूपिया महल के सामने साधुवेश रखकर ध्यान में लीन था।
सब लोग भेंट चढ़ा रहे थे, राजा ने भी हजार मुद्रायें चढ़ायीं। उसने किसी भी भेंट को छुआ भी नहीं।
अगले दिन दरबार में आकर 100 मुद्रायें मांगने लगा।
राजा- कल तुमने हजार मुद्रायें लेने से मना क्यों किया ?
कल मैं साधुवेश में था, यदि किसी की भी भेंट स्वीकारता तो साधुपद का अपमान होता।
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि पद का सम्मान प़त्येक मनुष्य को करना आवश्यक है।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है कि वह पूर्ण रूप से सत्य है। जीवन में पद का सम्मान देखकर करना आवश्यक है।जीवन में साधु गुरु, एवं बड़ों का सम्मान करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।