मेरा/ हम सब का सही परिचय… स्व-चतुष्टय है।
जो इस पर विश्वास करते हैं वे सम्यग्दृष्टि होते हैं।
हमारी कार्मण वर्गणायें भी अपने-अपने चतुष्टय में रहती हैं। वह मेरे/ हमारे चतुष्टय में नहीं रहतीं।
आर्यिका पूर्णमति माता जी (7 अक्टूबर)
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने परिचय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए सम्यग्दृष्टि होना परम आवश्यक है।
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने परिचय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए सम्यग्दृष्टि होना परम आवश्यक है।