पुदगल / जीव
पुदगल एक प्रदेश से प्रारम्भ होकर संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी तक।
पर जीव में एक ही विकल्प… लोक का असंख्यातवाँ भाग (अवगाहना की अपेक्षा),
समुद्धात की अपेक्षा लोक प्रमाण।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 587)
पुदगल एक प्रदेश से प्रारम्भ होकर संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी तक।
पर जीव में एक ही विकल्प… लोक का असंख्यातवाँ भाग (अवगाहना की अपेक्षा),
समुद्धात की अपेक्षा लोक प्रमाण।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 587)
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One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पुद्वगल एवं जीव का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीव को कल्याण के लिए मोक्ष मार्ग पर चलने का भाव रखना परम आवश्यक है।