प्रकृति
प्रकृति हमारे शरीर की रक्षा करती है…
वर्षाकाल में पित्त पैरों में आ जाता है, जल से रक्षा होती है।
सर्दी में छाती में क्योंकि सर्दी का असर छाती पर ज्यादा होता है और पित्त की तासीर गर्म होती है।
गर्मियों में माथे में तब गर्मी का असर सर पर नहीं होता (गर्मी गर्मी को मारती है)।
आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी के सन्निध्य में भगवती आराधना- श्र्लोक 284 का स्वाध्याय
आचार्य श्री विद्यासागर जी के उपदेशों को संपादित किया आर्यिका अकंपमति माताजी (10 दिसम्बर)
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प़कृति का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए प़कृति पर भरोसा एवं श्रद्धा रखना परम आवश्यक है,