चाणक्यादि ने प्रण लेते समय चोटी में गाँठ बाँधी। द्रौपदी आदि ने चोटी खोली। उल्टी क्रियायें क्यों ?
पुरुषों की चोटी खुली रहती हैं, स्त्रियों की बंद। Unusual दिखने पर खुद को प्रण याद रहा आयेगा तथा दूसरे भी टोकते रहेंगे/ याद आता रहेगा।
चिंतन
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6 Responses
चिंतन में प़ण का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जब कभी किसी कार्य का प़ण लेते हैं उसको याद रखने के लिए चोटी में गांठ बांधने का प़यास करते हैं।
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चिंतन में प़ण का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जब कभी किसी कार्य का प़ण लेते हैं उसको याद रखने के लिए चोटी में गांठ बांधने का प़यास करते हैं।
‘चाणक्यादि’ kyun bola ? Ise clarify karenge, please ?
जब तक मगध देश को हरा नहीं लूँगा तब तक अपनी चोटी की गाँठ खोलूँगा नहीं।
Okay.
जय जिनेन्द्र!
पढ़ने और सुनने में यह आया है कि चाणक्य ने अपनी शिखा (चोटी) खुली रखी थी और प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर ही उसका बंधन (बांधना) किया जाएगा
मेरे ज्ञान में तो यही है फिर इस चिंतन में यह लॉजिक फिट भी बैठता है। आपने कहीं पढ़ा हो तो उसका स्नैपशॉट मुझे भेज दें और पुस्तक का नाम भी।