प्रमाद
बंध के कारणों में प्रमाद को अविरति के बाद में रखा है।
सो यह प्रमाद संज्वलन कषाय के सद्भाव वाला लेना है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
बंध के कारणों में प्रमाद को अविरति के बाद में रखा है।
सो यह प्रमाद संज्वलन कषाय के सद्भाव वाला लेना है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
4 Responses
मुनि श्री जी ने प़माद का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन का कल्याण करना है तो प़माद को समाप्त करना परम आवश्यक है!
Is context me, ‘प्रमाद’, ‘Anantaanubandhi’, ‘Apratyakhyaan’ aur ‘Pratyakhyaan’ कषाय के सद्भाव वाला kyun nahi lena hai ?
चूंकि यहाँ कषाय का क्रम अविरति के बाद आता है तो ऊँचे गुणस्थानों में संज्वलन ही होगी न।
Okay.