मुनि महाराज जी ने प़माद एवं कषाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जीवन के कल्याण के लिए प़माद एवं कषाय का त्याग करना परम आवश्यक है! Reply
सातवें गुणस्थान का नाम ही अप्रमत्त है। 2) प्रमाद को समाप्त करना आसान है इसलिए कम विशुद्धि से 7वें गुणस्थान में समाप्त हो जाता है। कषाय कठिन/ deep rooted, इसे समाप्त करने को 11वें गुणस्थान की विशुद्धि चाहिए। Reply
Jab पहले से छठे गुणस्थान तक प्रमाद ,कषाय के उदय से ही aata hai, 7वें गुणस्थान ke aage kashay rehte hue bhi, प्रमाद’ kaise samaapt ho jaata hai ? Reply
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मुनि महाराज जी ने प़माद एवं कषाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जीवन के कल्याण के लिए प़माद एवं कषाय का त्याग करना परम आवश्यक है!
‘7वें गुणस्थान में कषाय तो रहेगी पर प्रमाद नहीं।’ Iska kya kaaran hota hai ?
सातवें गुणस्थान का नाम ही अप्रमत्त है।
2) प्रमाद को समाप्त करना आसान है इसलिए कम विशुद्धि से 7वें गुणस्थान में समाप्त हो जाता है।
कषाय कठिन/ deep rooted, इसे समाप्त करने को 11वें गुणस्थान की विशुद्धि चाहिए।
Jab पहले से छठे गुणस्थान तक प्रमाद ,कषाय के उदय से ही aata hai, 7वें गुणस्थान ke aage kashay rehte hue bhi, प्रमाद’ kaise samaapt ho jaata hai ?
दो ही कारण हो सकते हैं ….
ऊपरी गुणस्थानों में कषाय मंद हो जातीं हैं तथा विशुद्धि बढ़ जाती है।
Okay.