उक्त कथन सत्य है कि बेईमानी दो प्रकार की होती है जिसमें
1बाह्य 2अंतरगं । बाह्य बेईमानी जैसे व्यापार/रिश्र्वत, रिश्तों में, समाज और राष्ट्र के प्रति होती है लेकिन इस बेईमानी को समाप्त किया जा सकता है लेकिन अंतरंग बेईमानी जो धर्म के प्रति यानी अपनी आत्मा से करता है वह अपना जीवन का कल्याण नहीं कर सकता हैं। अतः जीवन के कल्याण के लिए अंतरंग बेईमानी से बचना चाहिए।
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उक्त कथन सत्य है कि बेईमानी दो प्रकार की होती है जिसमें
1बाह्य 2अंतरगं । बाह्य बेईमानी जैसे व्यापार/रिश्र्वत, रिश्तों में, समाज और राष्ट्र के प्रति होती है लेकिन इस बेईमानी को समाप्त किया जा सकता है लेकिन अंतरंग बेईमानी जो धर्म के प्रति यानी अपनी आत्मा से करता है वह अपना जीवन का कल्याण नहीं कर सकता हैं। अतः जीवन के कल्याण के लिए अंतरंग बेईमानी से बचना चाहिए।