भव्यपना, अनुभूति में नहीं। भद्रपना (क्रूर का विपरीत) अनुभूति में आता है। कल्याण दोनों के होने पर ही।
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/5)
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भव्य एवं भद़ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Yahan par ‘अनुभूति’ ka kya abhipraay hai, please ?
स्वयं की Feeling/ दूसरों के observations.
Okay.
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भव्य एवं भद़ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Yahan par ‘अनुभूति’ ka kya abhipraay hai, please ?
स्वयं की Feeling/ दूसरों के observations.
Okay.