पंचम काल के अंत तक भाव-लिंगी मुनि होंगे ।
अज्जसि त्रियण सुद्धा (1. मोक्ष पाहुण गाथा)
2. तत्वानुशासन – श्लोक 83
स्व. पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी
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जैनागम में लिंग तीन माने गये है,मुनि,आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक।यह तीन लिंग द़व्य व भाव के भेद दो प्रकार के होते हैं,शरीर का ब़ाम्ह भेष लिंग है तथा अंतरंग में वीतरागता रुप भाव लिंग है। अतः उक्त कथन सत्य है कि पंचमकाल के अंत तक भाव लिंगी मुनि भी, जिसमें पंचमकाल के अंत में एक मुनि एक आर्यिका,एक श्रावक ही शेष रह पायेंगे।
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जैनागम में लिंग तीन माने गये है,मुनि,आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक।यह तीन लिंग द़व्य व भाव के भेद दो प्रकार के होते हैं,शरीर का ब़ाम्ह भेष लिंग है तथा अंतरंग में वीतरागता रुप भाव लिंग है। अतः उक्त कथन सत्य है कि पंचमकाल के अंत तक भाव लिंगी मुनि भी, जिसमें पंचमकाल के अंत में एक मुनि एक आर्यिका,एक श्रावक ही शेष रह पायेंगे।